Friday, July 1, 2011

"बोडि कू फोन"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु)
बोडि देळि मा बैठिक, धौण ढगडेक देखण लगिं थै,
हाथ मा धरिक, अपणु पराणु सी प्यारू, मोबाईल फोन,
ब्याखनि की बगत थै, धार ऐंच हैंसण लगिं थै, बल जोन,
आज क्या ह्वै होलु? नि आई मेरा बेटा धन सिंह कू फोन.

अचाणचक्क! कखि बिटि आई, धन सिंह कू दगड़्या मकानु,
बोन्न लगि, हे बोडि! क्या छैं देखणि, हाथ मा पकड़िक आज फोन,
बोडि बोन्न लगि, हे बेटा! आज ये निर्भागि फर सास निछ बाच,
बेटा धन सिंह कू फोन औण थौ, लग्युं छौं मैं कबरी बिटि मन मा सास,
मकानुन बोलि, क्या बोन्न हे बोडि, तेरु त छ यु फोन, बोडाफोन,
बोडिन फट्ट सी बोलि! हे लाटा, मेरा काला, यु निछ तेरा बोडा कू फोन,
ऊ बिचारा त, आज स्वर्ग मा छन, हमारा पित्र देवता बणिक,
हे छोरा! यु त मेरु छ, या यनु बोल "बोडि कू फोन".
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १.७.२०११)
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
http://www.facebook.com/media/set/?set=a.1401902093076.2058820.1398031521

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल