Wednesday, November 14, 2012

"काफळ"

काफळ खैल्या,
स्वर्ग मा जैल्या,
यी काफळ छन,
हमारा मुल्क का.....
देवतौं का रोप्याँ,
ऊँचा-ऊँचा डाँडौं मा,
बाँज बुराँश का,
बण का बीच,
देवतौं का हे!
मुल्क हमारा.....
पहाड़ की पछाण छन,
लाल रंग का,
भारी रसीला,
छकि छकिक खूब खाला,
जू अपणा मुल्क आला,
जू नि खाला,
मन मा पछ्ताला,
यी काफळ छन,
भारी रसीला.......

कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित , 15.11.12














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