Thursday, November 15, 2012

"हे गितांग"

तू यना गीत गा,
जौन कुतग्याळि सी लगु,
पर ध्यान रखि,
कैका मन मा तू,
हे! ठेस न लगा....
ह्वै सकु त,
यना गीत लगौ,
मनख्यौं का मन मा,
संस्कृति प्रेम की,
जोत सी जगौ,
पर भलि बात निछ,
क्वी भी खुश निछ,
कैका बोल्यांन,
कैका सोच्यांन,
क्वी फ़र्क नि पड़दु,
पर भलु नि लगदु,
कैकु मान करा,
सम्मान मिल्दु छ.....
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित १५.११.१२
कविमित्र शैलेंदर जोशी की इच्छा के अनुसार गजेन्द्र राणा जी द्वारा नरेंदर सिंह नेगी पर गए गीत पर मैंने ये रचना लिखी.



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