Monday, November 19, 2012

"यमराज पछताया"


यम पर कविता लिखते हुए,
कवि को निहार कर,
यमलोक से आये हुए,
यमराज के दूत,
यमलोक को लौट गए,
और यमराज से बोले,
महाराज क्या कहें,
आप ही जाकर,
उनको यमलोक लाओ...
यमराज बोले,
ऐसी क्या बात है?
यमदूत बोले,
महाराज वो आप पर,
कविता लिख रहे हैं,
हमने सोचा,
वे आपके मित्र हैं...
ठीक है, यमराज बोले,
मैं अभी जाता हूँ,
क्या लिख रहा है,
सबक सिखाता हूँ,
यमराज धरती पर आये,
देखा कल्पना में डूबे,
कविता लिखते,
तल्लीन हुए कवि को,
जो लिख रहे थे,
हे यमराज अभी नहीं,
मुझे धरा पर रहना है,
कौन करेगा ये कविता पूरी,
रह जाएगी फिर अधूरी,
"यमराज पछताया",
ये कवि "जिज्ञासु" प्रेमी मेरे,
क्योँ मैं यहाँ आया....
मुझे आश्चर्य हुआ,
प्रकृति के चितेरे,
स्व. चंद्रकुंवर बर्त्वाल जी ने,
यमराज पर भी लिखा था,
फिर क्योँ छीना यम ने,
उनका यौवन..........
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
20.11.2012
यह कविता मैंने श्री परासर गौड़ जी की कविता
साक्षात्कार ( यमराज का कबि से ) के सन्दर्भ में लिखी है....

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