Thursday, November 1, 2012

"क्या बोन्न! हे दिदौं"

भैंसा पाळिक घ्यू खांदा था,
अब पाळ्दा कुत्ता,
घ्यू का बदला दारू पेणा,
बण्याँ छन जुत्ता,
हाल यना होयां छन,
छकि छकिक पेण लग्यां,
होश सी बेहोश होयां,
सुलार ऊद मुता,
कनु जमानु आई हे,
नौना नौनी का ब्यो मा,
भारी डौर होईं छ,
दारू का दिवानौ की,
नयुं रिवाज शुरू ह्वैगी,
दिनमानि  कू  ब्यो,
कळजुग्यौं की कृपा सी,
आज देखा यनु ह्वैगी,
जनु भि ह्वै, भलु ह्वै,
अब "क्या बोन्न! हे दिदौं"...
अनुभूतिकर्ता: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित १.११.२०१२ 
 

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