Friday, November 16, 2012

"लंगोट्या यार थौ मेरु"

जब मैं अर ऊ,
स्कूल मा पड़दा था,
एक गौळा पाणी थौ,
एक पल नि रन्दा था,
एक हैक्का का बिगर,
पढाई पूरी ह्वै जब,
एक हैक्का सी बिछड़ग्यौं,
जवानी बिति बुढापु आई,
भौत दिनु का बाद,
मैकु मिली ऊ अचाक्क,
पूछण लगि मैकु,
बल भाई साब,
तुमारु नाम क्या छ?
बिछड़दि बग्त जैन,
मैकु बोलि थौ,
मैं त्वैकु कब्बि,
नि भूली सकदु दिदा,
तू मेरा मन मा बस्युं रैल्यु....
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित

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