Monday, November 5, 2012

"चकड़ीत दरोळु"

 
हे राम! क्या बोन तब,
पहाड़ का एक गौं मा,
एक सयाणु मनखि,
दिखेण मा लिंग्रताण्या,
पर होशियार भारी,
रखिं रंदि थै जैकि,
अफमु लोण की गारी,
देख्दु थौ जख बैठ्याँ,
अपछाण दूर का,
दारू पेंदा दरोळा,
बोल्दु थौ, हे बेटौं,
न पेवा, चुचौं दारू,
हे! भलु होलु तुमारु,
तब बोल्दा था दरोळा,
हे बोडा तू भी चाख,
भलि चीज छ दारू,
फेर झट्ट बोल्दु बोडा,
बेटौं मैं नि पेंदु दारू,
थोड़ा सी देवा मैकु,
स्टील का गिलास फर,
कनि होन्दि होलि,
आज चाख्दु छौं,
दरोळौन गिलास भरि,
अर बोडा का अग्वाड़ि,
हाथ बढाई,
तबर्यौं एक जाणकार,
कुजाणि कख बिटि आई,
यु "चकड़ीत दरोळु" छ,
वैन दरोळौं तैं बताई,
क्वी बात निछ,
दरोळौंन बोलि,
हे! हमारू दगड़्या छ.....
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित, ५.११.१२

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