Wednesday, July 20, 2011

"रौंत्याळि डांड्यौं मा"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
जख बिति होलु बचपन, सोचा हे! हमारू,
देवतौं कू मुल्क छ, हमारू भी प्यारू,
हरा भरा बण अर लाल माटा की मटखाणी,
गाड अर गद्न्यौं मा बगदु ठण्डु पाणी,
बथौं कू फुम्फ्याट अर बरखा बत्वाणि,
धार ऐंच बैठिक हेरा, भौत खुश होंदु छ पराणि...
हे दिदौं, भुलौं वे मुल्क की, हम्न कदर नि जाणि,
दूर देश परदेश मा जब-जब याद औन्दि छ,
भौत क्वांसू होंदु छ हमारू पापी पराणि,
टरकणि, मन मा गाणी, वख छ सब्बि धाणी,
लगदि होलि आपका मन मा स्याणी,
जरूर जवा "रौंत्याळि डांड्यौं मा",
देख्यन, कथगा खुश होलु पराणि,
दाळ, गौथ, खाजा, बुखणा, स्यो, नारंगी,
हे! मिलली हमारा मुल्क घ्यू की माणी.
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: २०.७.२०११)
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