रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: २५.७.२०११)
पैलि प्यारा पहाड़, फुर्र उड़िक जान्दा,
भमोरा,काफळ,खैणा, तिम्ला खूब खांदा,
बांज, बुरांश की डाळ्यौं मा बैठिक,
टक्क लगैक, वे उत्तराखंड हिमालय तैं हेरदा...
अनंत आकाश मा उड़ि-उड़िक,
पंच बद्री,पंच केदार, पंच प्रयाग,
जगनाथ,बागनाथ जी का दर्शन करदा...
देवभूमि देवप्रयाग जख,
श्री रामचन्द्र जी त्रेता युग मा ऐ था,
मनोहारी अलकनंदा-भागीरथी संगम फर,
नहेन्दा अर टक्क लगैक देखदा...
चन्द्रबदनी,सुरकंडा,कुंजापुरी,धारीदेवी,
कमलेश्वर, किकलेश्वर, सैणा श्रीनगर,
देवी देवतौं का दर्शन करदा....
प्यारा उत्तराखंड का हरेक गौं का,
रीत-रिवाज, संस्कृति का दर्शन करदा,
"पंछी होन्दा" आजाद ह्वैक,
देवभूमि उत्तराखंड मा विचरण करदा.
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
http://www.facebook.com/media/set/?set=a.1401902093076.2058820.1398031521
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Tuesday, July 26, 2011
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