फिर एग्यैं तुम,
पांच साल पूरा करिक,
अपणि अर प्यारा चम्चौं की,
पापी पोटगी भरिक,
हम सनै क्या मिलि?
तुम सनै वोट दीक.......
अबरीं दां हम,
तुमारी मीठी बातु मा,
बिल्कुल नि औण्या,
उबरी त बोलि थै बात,
आपन मन भरमौण्या,
कथगा करि आपन,
हमारा गौं मुल्क कू विकास,
पिछला पांच साल मा,
गौं खाली ह्वैगी हमारू,
हम होयां छौं निराश.....
कुछ भि बोला,
भलु न ह्वान तुमारू,
तुम्न खाई हमारू,
हम तुम्तैं वोट द्योला,
कतै न रख्यन सारू,
तुम जूठा,अबिस्वासी,
दुबारा जीत कू सुपिनु न देखा,
पाप धोण का खातिर,
चलि जवा तुम अब,
हे नेता जी, गया अर काशी...
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
6.1.2012
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Friday, January 6, 2012
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