Friday, January 6, 2012

"दरोळु"

जैकु लोग भलु नि बोल्दा,
किलै होलि पिनी?
यनु भी नि सोचदा....
आज दुनिया पेणी छ,
लुकाँ-ढकाँ अर देखाँ,
ब्यो बारात मा,
दिन हो या रात मा,
कै भी शुभ काम मा,
फेर निचंत करिक सेणी छ....
दुख मा दारू, सुख मा दारू,
अनुसरण कन्नु छ,
सभ्य समाज हमारू,
जबकि पैलि लोग,
कतै नि पेंदा था दारू,
तब विकसित नि थौ,
उत्तराखंडी समाज हमारू.....
क्या बोन्न तब,
आज का युग मा,
दारू हिछ सारू,
"दरोळु" त बोल्दु छ,
हौर ल्हवा रे दारू......

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
6.1.2012
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
www.pahariforum.net

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल