देख्दु जावा तुम, कुछ दिन की बात छ,
वे प्रभु का हाथ छ,
होलि कृपा जू तुमारी,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
झट पट्ट मैं भी, वे प्यारा देरादूण,
विधान सभा मा जौलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
चलि जौलु प्रतिनिधि बणि, पहाड़ सी दूर,
सदानि मन मा ख्याल, तुमारु रलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
पूरा पांच साल, देहरादून रौलु रे,
सच छौं बोंनु, पहाड़ औलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
ये पहाड़ जब आलि, आफत तुम फर,
सच छौं बोंनु, देखण औलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
तुमारी आंख्यौं कू मैं,
तारु बणि जौलु रे, बौड़ी बौड़ी औलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
तुमारा हाथु कू साथ,
पिठैं अर फूल पात,
याँ सी क्या छ भलि बात,
हे! तब नेता बणि जौलु रे,
तुमारु सेवाकार रौलु रे.....
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २७.१.२०१२)
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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