Monday, January 2, 2012

"मनख्यौं का बोल"

ज्युकड़ा ऊद, सेळि सी पड़दि,
जू क्वी बोलु, भला बोल,
पर हे मनखी, सुदि नि बोन्नु,
मुख सी बुरा बोल....

कथगा चुभदी बुरी बात,
बोन्न सी पैलि, हे मनखी तू,
अपणा मन मा तोल,
कैकु मन दुखैक,
मन मा होंदु घंघतोळ.....

मनखी मरी मिटि जांदु,
रै जांदा वैका, भला बुरा बोल,
याद करदा छन तब मनखी,
"मनख्यौं का बोल".........
(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" २.१.२०१२)
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