आंख्यौं सी दूर,
बस्याँ रन्दन,
जू आँखौं मा,
उत्तराखंडी भै बन्धु का,
जौंकु मिजाज, मन मा,
कुतग्याळि लगौण्यां छ,
पर मन मा,
एक टक्क सी लगिं छ,
कना होला अजग्याल,
जीत का जंजाळ मा,
वे प्यारा गढ़वाळ मा,
बसिं होलि जौंका मन मा,
एक ही बात,
हास्य अभिनेता छौं,
हे! नेता बणै देवा,
मैकु जितै देवा,
नेता बणि जौलु,
आपका दुःख दर्द सब्बि,
तुमारा मन की सुपन्याळि,
योजना ल्हेक, साकार करिक,
विकास की जोत जगौलु,
गढ़वाळ कू,
"प्रिय घन्ना भाई".......
रचनाकर: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: २३.१.२०१२
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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