Wednesday, January 4, 2012

क्या बोन्न हे "धाद"?

मन मा दुःख एक हिछ,
हमारू मुल्क,
प्यारू पहाड़,
पर्वतजन की बेरूखी सी,
होण लग्युं छ बर्बाद,
संस्कृति, तन अर मन,
तौंका बदलिग्यन आज,
आप भी प्रयासरत छन,
मन सी बिंगु जू समाज,
सब्बि जू यनु सोच्वन,
वक्त भी बोंनु छ आज,
मेरा कविमन की कामना,
सुमति प्रदान कर्वन,
सब्ब्यौं तैं बद्रीविशाल,
कालजई रौ हमारू,
कुमाऊँ अर गढ़वाल,
क्या बोन्न हे "धाद",
पराणु सी प्यारू पहाड़,
सदानि रौ आबाद.......
(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ४.१२.२०१२)
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित,
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