पहाड़ उजड़ रहा है,
मिट रहा है,
निराश हो रहा है,
अस्तित्व खो रहा है,
जिम्मेदार पर्वतजन हैं,
जो उससे दूर भाग रहे हैं...
सुना है दिल्ली मेट्रो के हीरो,
श्रीधरन अपने गाँव रहने के लिए,
रिटायरमेंट के बाद जा रहे हैं,
सबक है पर्वतजन के लिए,
कैसे आबाद रहेंगे,
उत्तराखंड के गाँव,
और प्यारे पहाड़,
कौन खोलेगा बंद किवाड़?
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.
३.१२.२०१२See More
Vivek Patwal, Butola Kamal, Yashpal Singh Pundir and 6 others like this.
Manish Mehta नव वर्ष की पहली बेहतरीन कविता के लिए सुभकामनायें !
मनीष जी...
पहाड़ पर मेरी कविता,
आपके मन को भायी,
शायद पहाड़ की आपको,
बहुत याद आई,
कामना करें,
हमारा पहाड़ आबाद रहे,
हम सदा नहीं रहेंगे,
पर हमारा प्यारा उत्तराखंड,
जुग जुग तक आबाद रहे,
मेरा कविमन तो यही कहे,
आओ प्यारे पर्वतजन,
जन्मभूमि का सृंगार करें...
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
Diwan Singh Kaintura happy new year
Shubham Chand kavita ache hai
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Tuesday, January 3, 2012
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उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
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गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
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