Tuesday, January 3, 2012

पहाड़

पहाड़ उजड़ रहा है,
मिट रहा है,
निराश हो रहा है,
अस्तित्व खो रहा है,
जिम्मेदार पर्वतजन हैं,
जो उससे दूर भाग रहे हैं...

सुना है दिल्ली मेट्रो के हीरो,
श्रीधरन अपने गाँव रहने के लिए,
रिटायरमेंट के बाद जा रहे हैं,
सबक है पर्वतजन के लिए,
कैसे आबाद रहेंगे,
उत्तराखंड के गाँव,
और प्यारे पहाड़,
कौन खोलेगा बंद किवाड़?

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.
३.१२.२०१२See More
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Manish Mehta नव वर्ष की पहली बेहतरीन कविता के लिए सुभकामनायें !
मनीष जी...
पहाड़ पर मेरी कविता,
आपके मन को भायी,
शायद पहाड़ की आपको,
बहुत याद आई,
कामना करें,
हमारा पहाड़ आबाद रहे,
हम सदा नहीं रहेंगे,
पर हमारा प्यारा उत्तराखंड,
जुग जुग तक आबाद रहे,
मेरा कविमन तो यही कहे,
आओ प्यारे पर्वतजन,
जन्मभूमि का सृंगार करें...
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
Diwan Singh Kaintura happy new year
Shubham Chand kavita ache hai

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