ऐंसु का ह्युंद ह्यून छयिं छन,
जख जान्दु छ कल्पना मा,
हमारू तुमारु मयाळु मन,
दूर परदेश जू भै बन्ध होला,
होलि याद औणि ऊँ तैं,
उदास भी होला होण लग्यां,
यनु सोचि मन मा,
हे ! हमारा प्यारा पहाड़,
हम्न क्या कन्न.....
प्यारी हिंवाळि डांडी काँठी,
मनमोहक छन हमारा मुल्क,
होलि जख फुंड घुघती प्यारी,
हिटणि ठण्डु मठु सुरक सुरक,
दादा जी कू ह्वक्का कुड़-कुड़,
गौथु की डिग्ची चुल्ला मा,
होलि थिड़कणि थिड़-थिड़,
होलु बोडा कोदा की रोठठी,
घर्या घ्यू का दगड़ा खाणु,
नाती नतणौ कथा सुणौणु,
कथगा स्वाणि होलि लगणि,
"ऊँचि निसि डाँडी-काँठी"....
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
१६.१.२०१२, www.pahariforum.net
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
No comments:
Post a Comment