Sunday, January 15, 2012

"ऊँचि निसि डाँडी-काँठी"

ऐंसु का ह्युंद ह्यून छयिं छन,
जख जान्दु छ कल्पना मा,
हमारू तुमारु मयाळु मन,
दूर परदेश जू भै बन्ध होला,
होलि याद औणि ऊँ तैं,
उदास भी होला होण लग्यां,
यनु सोचि मन मा,
हे ! हमारा प्यारा पहाड़,
हम्न क्या कन्न.....

प्यारी हिंवाळि डांडी काँठी,
मनमोहक छन हमारा मुल्क,
होलि जख फुंड घुघती प्यारी,
हिटणि ठण्डु मठु सुरक सुरक,
दादा जी कू ह्वक्का कुड़-कुड़,
गौथु की डिग्ची चुल्ला मा,
होलि थिड़कणि थिड़-थिड़,
होलु बोडा कोदा की रोठठी,
घर्या घ्यू का दगड़ा खाणु,
नाती नतणौ कथा सुणौणु,
कथगा स्वाणि होलि लगणि,
"ऊँचि निसि डाँडी-काँठी"....

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
१६.१.२०१२, www.pahariforum.net

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