Wednesday, February 20, 2013

"यथैं वथैं"




जख ह्वै होला दगड़या,
हमारा तुमारा बचपन का,
जौं  दगड़ि लफड़ेन्दा  था,
भ्वीं फुंड माटा मा,
बचपन अपणु खतदा था,
गौं का बाटा मा,
गौं का बण मा,
जौंका  दगड़ि गोरु चरैन,
आरू, घिंगारू, खैणा, तिम्ला,
छकि छक्किक खैन,
मन आज कुतग्याळी,
हर पल लग्दी छन,
आज ऊ दिन कख गैन,
जौं दगड़ि बाळू बचपन,
बिति अर बिताई,
ऊ दगड़या,
आज "यथैं वथैं" ह्वैक,
कख कख चलिगेन.......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित
20.2.13


 


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