मेरा दगड़या कू,
मैकु रैबार अयुं छ,
त्वैकु कनुकै बतौं हे दिदा,
यख मौल्यार छयुं छ,
फयोंलि का दगड़ा,
अड़ेथु बणिक,
बौल्या बुरांश अयुं छ...
जगमोहन सिंह जयाड़ा,
कवि नाम "जिज्ञासु" मेरु,
मन मेरु पाड़ गयुं छ,
मेरा दगड़या कू,
मैकु रैबार अयुं छ....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित,
25.2.13
Girish Badoni बहुत बढिया भैजी !!! यी यना खुदेड भाव मन ते डांडी- कांठी की तरफ लिज़ान्दा छन , पर गोनी- बान्दरु न यख रनु मुस्किल कैली ...तौ दडी कुकुरून न भी दगडी बनेक मनखि सनी यख बीटी भगोनुकु पुरु ताम - झाम कैली .

Dimpal Mahara wah boht khoob jayara ji......umda
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