Thursday, February 7, 2013

"तुम सी भलु"


धर्म पत्नी का मन मा,
कैकी भी,
भौं कबरि ख्याल औन्दु,
तब बोलि ही देन्दि,
या निकळी जान्दी,
वींका मन की बात,
तब हम लगै देंदा,
अपणा कंदुड़ फर हात....

बल तुमसि भलु,
ऊ हि थौ, जू मैं देखण आई,
जबरी मैं उन्नीस साल की,
नौनी थौ वे गढ़वाळ की....

निशब्द ह्वैक सब्बि,
सुणदा धर्म पत्नी का,
फूल काफ़ळ जना यी बोल,
क्यांन चिरड़े होलि आज,
सिट्टी पिट्टी ह्वै जांदी गोळ,
भूकू ही जाण पड़लु,
अब ड्यूटी फर भोळ....

एक कवि मित्रजिन,
बोलि थौ,
कवि सम्मलेन मा,
सदा सुखमयी जीवन,
बितौण का खातिर,
धर्म पत्नी की हर बात,
प्रेम सी सुणा,
आपस मा प्रेम,
बढ़लु बल कई गुणा,
खास करिक जू,
अब बुढ़ापा का न्योड़ु,
स्वर्ग का नजिक छन....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित 9.2.2013
माननीय भीष्म कुकरेती जी का लेख "पत्नी के दिल में ख्याल आता है" तुमसे ही बढ़िया त वो फिल्म वाळ राकेश इ ठीक छौ... से प्रेरित मेरी गढ़वाली कविता














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