(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु)
हे राम! क्या बोन्न तब?
आज हमारा उत्तराखंड मा,
यूंकू राज होयुं छ.....
बाग कुजाणि घर बण फुंड,
क्यौकु डुक्कन्न लग्यां छन,
खौंबाग भी होयां छन,
गौं फुंड जू मनखि रयां छन,
डन्न लग्युं छ ऊंकू मन....
कूड़ा की पठाळ,
बांदर हलकौणा छन,
चौक मा लगिं चचेंन्डी,
काखड़ी,मुंगरी दनकौणा छन...
रीक्क बण बूट मा,
मनख्यौं बग्दौणा छन,
हॉस्पिटल मा लोग तब,
इलाज का खातिर औणा छन.....
सुंगर आबाद अर बांजा पुंगडौं,
लोट पोट ह्वैक, उत्पात कन्ना छन,
क्या बोण, क्या लौण फसल पात?
बल हताश होयां छन,
नेतौं की बात क्या बोन्न,
ऊ बिना बोयां लौण लग्यां छन....
(सर्वाधिकार सुरक्षित अवं प्रकाशित २९.१२.२०११)
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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