Tuesday, December 10, 2019

पतरोळ

उत्तराखण्डा ऊंचा डांडौं मा हरा भरा बण सब जगा छन। 1985 सी पैलि बेटी ब्वार्यौं तैं घास लाखड़ु का खातिर युं बणु मा जाण पड़दु थौ।  हर चौक मा भैंसा बल्द बध्यां रन्दा था। गौं की सार्यौं मा घास लाखड़ु की कमी होण का कारण ऊंचा डांडौं फर गौं का लोग निर्भर रन्दा था। बेटी ब्वारि जब बण जान्दि त पतरोळ की भारी डौर रन्दि थै।  पतरोळ जूड़ी दाथड़ि लूछि देन्दा था अर बण औण कु मना करदा था।  घसेर्रयौं का सामणि भारी आफत पैदा ह्वे जान्दि थै।  एक तरफ सैसर्यौं की डौर अर दूसरी तरफ पतरोळ की। 

1906 मा राजशाही का दौरान वन अधिकारी सदानन्द गैरोळा न चन्द्रवदनी, टिहरी क्षेत्र की मुनार बन्दी करवै थै। उबरि खासपट्टी का लोगुन बण फर अपणा हक्क का खातिर ढ़ंढ़क आन्दोलन करिक अपणु विरोध जताई थौ।  मुनारबन्दी सी पैलि लोग बण बिटि बेरोक टोक घास लाखड़ा ल्हौन्दा था।  जब बण मा बणांग लग्दि थै त सब्बि गौं का लोग आग बुझौण जान्दा था। मुनारबन्दी का बाद गौं का लोग्वा मन मा या बात आई, अब्त बण सरकारी छन। आग बुझौण की जिम्मेदारी सरकार की हिछ।  बणु की जग्वाळ का खातिर सरकार न पतरोळ नियुक्त कर्यन अर गौं का लोगु तैं बण बिटि घास लाखड़ु ल्हौण की मनाही ह्वेगि।

पतरोळ की व्यथा या होन्दि थै, जु घसेन्यौं फर दया करदु त नौकरी खतरा मा। साब सुण्लु त नौकरी चलि जालि अर नौकरी जालि त, बाल बच्चौं न तब क्या खाण? एक पतरोळ मूं लगभग बीस वर्ग किलोमीटर कु क्षेत्र होन्दु।  यथ्गा बड़ा क्षेत्रफल का बण की रख्वाळि कन्नु भि औखु काम होन्दु। पतरोळ नि दिखेन्दु त घसेरी तबर्यौं बांजै डाळि काटिक काम तमाम करि देन्दि थै। हौळ लगौण कु नसुड़ा का खातिर लोग बांजौ डाळु रड़कै देन्दा था।  जब पतरोळ वे क्षेत्र मा औन्दु त देख्दु, बांजै डाळि काटि कूटिक काम तमाम करयुं छ।  

पाडैं बेटी ब्वार्यौं कु बण जाणु जरुरी होन्दु थौ।  सुबेर राति उठिक सब्बि बेटी ब्वारि कै मैल ऊकाळ हिटिक बण पौंछ्दि थै।  बाल बच्चौं सी ज्यादा गोरु भैंसौं की फिकर होन्दि थै।  बण बिटि घास ल्हौणु, गोर भैंसा पिजौणु, चूल्लू जगैक खाणौ बणौणु, बाल बच्चौं तैं खलौणु पिलौणु, थकि हारिक से जाणु, या थै पाड़ै बेटी ब्वार्यौं की जिंदगी।    
पतरोळ जाण्दु थौ, पाड़ की बेटी ब्वार्यौं कु बण हि सारु छ।  एक गौं की घसेरी न सुबेर बण जान्दि बग्त अंधेरा मा कोदा की रोठ्ठी समझिक रोठ्ठी बणौण कु तौ चादरि फर लिब्टैक धरि।  बण मा घास काटण का बाद दिन मा सब्यौंन अपणि रोठ्ठी खोल्यन त वीं घसेरिन देखिवींकु रोठ्ठी की जगा तौ ल्हयुं छ। 

पाड़ की बेटी ब्वार्यौं तैं काम की भारी राड़ धाड़ रन्दि थै। कुपोषण का कारण उम्र सी बड़ी लग्दि थै बेटी ब्वारी।  पति परदेस रन्दा था, बाल बच्चौं की रेख देख, धन, चैन, खेती बाड़ी का काम मा जिंदगी कटेन्दि थै। तबरि तौंकी जिंदगी पाड़ जनि औखि थै।  1985 का बाद बग्त बदलि, बेटी ब्वार्यौं की जिंदगी मा कुछ बदलौ आई।  पर्वासी अपणा परिवार तैं दगड़ा ल्हिग्यन अर पाड़ खाली होण लगि।  पाड़ मा रैग्यन सिर्फ बुढ़्या ब्वे बाब।  पाड़ मा पलायन पसरी अर गौं मा वा रौनक अब नि रैगि।

पाड़ मा आज सब सुविधा छन।  बण आज क्वी घसेरी नि जान्दि ।  बण यथ्गा घणा ह्वेग्यन, अब वख बाग रीक्क की भारी डौर छ।  पतरोळ बेफिक्र छन किलैकि अब बण मा मनख्यौं कु जाणु बिल्कुल बन्द ह्वेगि।  गौं गौं मा आज घास लाखड़ु भौत छ।  धन चैन कै भि चौक मा अब नामात्र का छन।   पुंगड़ा बंजेणा छन अर वख बान्दर सुंगर मौज मनौणा छन।  दूरदर्शन फर एक दिन पाड़ फर डौक्युमेन्टरी प्रसारित होणी थै।  मैंन धर्मपत्नी कु ब्वलि, देख हमारु पाड़ क्थ्गा रौंत्याळु छ।  धर्मपत्नी न ब्वलि, “पाड़ पिक्चर मा हि सुन्दर लग्दु, पाड़ की जिन्दगी हमारा खातिर कतै भलि नि थै।

पतरोळ पाड़ की घसेरियौं का खातिर एक खलनायक थौ।  बण घसेरियौं का मैत था।  चिपको आन्दोलन की महिला कार्यकर्ताओं न भी बण तैं अपणु मैत बताई।  जब जब सरकान न बण काटण का ठेका दिनिन्यन त महिलाओं न बढ़ि चढ़िक बण बचौण का खातिर आन्दोलन करिक अपणा बण बचैन। घसेरी अर पतरोळ का बीच द्वन्द फर गीताकारु न गीत बणैन अर गीत मा पाड़ की घसेरियौं की व्यथा भि बताई।  बग्त बदलि अर घसेरियौं की औखि जिंदगी भि।  पाड़ पलायन सी आज घैल छ।   पाड़ पिरेमि आज पलायन की बात करदन।  असंभव लगणु छ, जब तक पाड़ मा रोजगार, शिक्षा अर स्वास्थ्य की भलि व्यवस्था नि ह्वलि, पाड़ दिन दिन पलायन सी त्रस्त ह्वन्दु जालु।

पतरोळ अर घसेरी कु युग अब अतीत मा समैगि।  घसेरियौं की वा पिड़ा अब हमारा पाड़ मा निछ।  हमारी नयी पीढ़ी अब पतरोळ का बारा मा कुछ नि जाण्दि।  कखि लेख कथाओं मा हि घसेरी अर पतरोळ बारा मा पढ़लि।  घसेरियौं की वे बग्त की पीढ़ी आज प्रवास मा सुखी जिंदगी बितौणि छ।  जब जब वे बग्त की बात ऊंका मन मा आलि, तब की जिंदगी अर पिड़ा उभरिक मन मा जरुर आलि। 


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दर्द भरी दिल्ली प्रवास बिटि,
दूरभाष: 9654972366
दिनांक 08/12/2019 
कुमगढ़ पत्रिका के लिए रचित 

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