Monday, December 16, 2019

"पहाड़ पूछ रहे थे"



अभी लौटा हूँ पहाड़ से,
जहाँ जन्मभूमि है आपकी,
कह रही थी आते रहो,
कहना सभी को,
खुश खबर लेने,
मेरी और,
अपने माँ बाप की.

निहारा मैंने जी भर कर,
प्यारे पहाड़ों को,
जिन पर लिपटी थी,
सड़कों की मालाएं,
वनों के वस्त्र पहने,
बरखा में भीगते,
छुपाती उनको,
भागती कुयेड़ी.

घूमते हुए मैंने देखा,
दम तोड़ते घरों को,
जिनमें कभी रहते होंगे,
पित्र बन चुके माँ बाप,
आस औलाद हैं कि,
लौटते नहीं,
पितरों की विरासत की,
खुश खबर लेने.

जब मैंने लिए ,
पहाड़ों के छायाचित्र,
मुस्कराते हए,
उन्होंने मुझसे पूछा,
क्या, हम इतनें सुन्दर हैं?
तब मैंने उनसे कहा,
हाँ, तभी तो आता हूँ,
आपको निहारने,
आपकी तस्वीरें उतारने,
लिखता हूँ आप पर,
कविताएँ भी.

जब चला मैं घर से,
प्रवास की ओर,
लौट-लौटकर निहारा,
पर्वतों को,
न जाने फिर कब लौटुंगा?
मुझे कहा पर्वतों ने,
जा "जिज्ञासु" ,
तुझे कुशल रखें,
बद्रीविशाल.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
8.10.2009, दूरभास:9868795187
E-Mail: j_jayara@yahoo.com 

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