धरि थै गल्वाड़ा फर,
बचपन मा बुबाजिन,
ममतामयी माँ जिन,
स्कूल मा मास्टर जिन,
गौं का सयाणा मन्खिन,
ऊछाद, गल्ती कन्न फर.
आज जमानु यनु निछ,
अजग्याल का छोरों देखिक,
ब्वे, बाब,मास्टर जी,
गौं का सयाणा मन्खि,
भौत डरदा छन अफुमा,
इज्जत का खातिर,
चुप रण मा ही भल्यारि,
समझदा छन सब्बि.
"झबर्ताळ" लगण फर,
होन्दु थौ अहसास,
अपणी भूल या गल्ती कू,
भूलिक करदा था भलु काम,
अपणी जिंदगी का खातिर,
हिट्दा था सुबाटा फुन्ड,
क्वी ठटा न लगौ हमारी.
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित-"झबर्ताळ" नि लगैन २७.४.२०१०)
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