पहाड़ की चोटी पर चढ़कर,
मन में एक ख्याल आया,
क्योँ न छू लूँ आकाश को,
हाथ को ऊपर उठाया.
आकाश की अनंत ऊँचाई,
लेकिन मन की है चाहत,
छू न सका तो क्या हुआ,
चंचल मन नहीं हुआ आहत.
पहाड़ी का मन पहाड़ पर,
प्रफुल्ल हो सर्वदा मंडराए,
क्या अनुभूति होती पहाड़ पर,
यथार्थ पर्वतवासी ही बताए.
पहाड़ प्रकृति को समेटे,
जब बहुरंगी रूप दिखाए,
देखता जब कोई दर्शक,
मोहित हो सब कुछ भूल जाए.
पहाड़ की चोटी पर चढ़कर,
तभी तो मन में ख्याल आया,
कवि "जिज्ञासु" की ये अनूभूति,
आपको विस्तार से बताया.
Copyright@Jagmohan Singh Jayara"Zigyansu"......28.8.09
E-Mail: j_jayara@yahoo.com, (M)9868795187
मन में एक ख्याल आया,
क्योँ न छू लूँ आकाश को,
हाथ को ऊपर उठाया.
आकाश की अनंत ऊँचाई,
लेकिन मन की है चाहत,
छू न सका तो क्या हुआ,
चंचल मन नहीं हुआ आहत.
पहाड़ी का मन पहाड़ पर,
प्रफुल्ल हो सर्वदा मंडराए,
क्या अनुभूति होती पहाड़ पर,
यथार्थ पर्वतवासी ही बताए.
पहाड़ प्रकृति को समेटे,
जब बहुरंगी रूप दिखाए,
देखता जब कोई दर्शक,
मोहित हो सब कुछ भूल जाए.
पहाड़ की चोटी पर चढ़कर,
तभी तो मन में ख्याल आया,
कवि "जिज्ञासु" की ये अनूभूति,
आपको विस्तार से बताया.
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