Monday, December 16, 2019

"बहती नदी"

बचपन में देखा था,
लेकिन, पता नहीं था,
मुझे उसका पथ.

जवान होने पर,
१२ मार्च १९८२ को,
जब मैं घर से चला,
बोझिल होकर भागती,
बस में बैठकर,
दूर दिल्ली की तरफ.

देवप्रयाग में मैंने देखा,
दो नदी गले मिल रही थी,
जिनमें एक वही,
बहती नदी थी,
जिसे मैंने,
बचपन में देखा था,
कहलाती है अलकनन्दा,
और दूसरी भागीरथी.

देवप्रयाग के बाद,
ऋषिकेश की तरफ बहती,
नदी कहलाती है गंगा,
जिसके समान्तर,
भागती हैं गाड़ियां,
हरिद्वार तक,
पहाड़ की जवानी ढोती,
शहरों की ओर,
पहाड़ का पानी बहता है,
दूर सागर की तरफ.
बहती नदी में.


सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(28.4.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७     

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