Monday, December 16, 2019

"गर्मी से बेहाल"


तेज झुलसती गर्मी में, तन मन हुआ बेहाल,
अब याद आ रहा है, अपना कुमायूं और गढ़वाल.

जल्दी जाकर किसी गाड में, ठंडे पानी से नहायें,
हिंसर, किन्गोड़ और काफल, छक-छक्क कर खायें.

बांज, बुरांश और देवदार के, जंगल जहाँ दिख जायें,
कल कल बहता पानी पीकर, बेफिक्र होकर सो जायें.

सर सर बहती हवा में, किसी धार के ऊपर बैठ जायें,
देखें धरती उत्तराखंड की, व्यथित मन को बहलायें.

याद आ रहा है बचपन, उत्तराखंड में जो दिन बिताये,
ठण्ड में चूल्हे की आग सेकी, गर्मी में धारे पे नहाये.

कौन सा बँधन बाँधे हमको, जन्मभूमि, देवभूमि से दूर,
पूछ रहा "जिग्यांसू" आपसे, कितने खुश हो या मजबूर?

समझ में तो है आ रहा, भला नहीं होता प्रवास,
भुगतो सुख दुःख सारे, यही समझना है खास.

तेज झुलसती गर्मी में,  अपना कुमायूं और गढ़वाल.
जाते हैं घुमक्कड़ पहाड़ पर घूमनें, जब गर्मी से बेहाल.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(30.4.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७  
       

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