Wednesday, December 14, 2011

"कविमन की बात"

आज भी याद है मुझे,
वो दिन,
जब ढोल दमौं बजा,
मुश्क्या बाजा भी,
पौणौ की लंगट्यार लगी,
बारात सजी,
और दूल्हा बनकर,
पालकी में बैठा,
क्या तुम्हे भी याद आती है,
अपनी शादी की?
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
१४.१२.२०११

जब नहीं मिलेंगे सन्देश मेरे,
समझना दाल में कुछ काला है,
मेरे बाद आपको,
कौन कुछ बताने वाला है,
मन में तमन्ना है,
जब तक आपके बीच रहेंगे,
कविमन से कुछ तो कहेंगे,
पहाड़ और पहाड़ की संस्कृति पर,
प्यारी गढ़वाली कविताओं के द्वारा,
चाहत है कविमन में मेरी,
आपकी दुआएं मिलती रहें...
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
१४.१२.२०११
E-mail: j_jayara@yahoo.com

"दस्तक"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
मैं छान का भितर,
सेयुं थौ फंसोरिक,
कै दगड़्यान दस्तक दिनि,
हे चुचा, क्या छैं तू आज सेयुं,
भैर देख घाम ऐगी, ऊजाळु ह्वैगी,
बौग न मार, मेरु बोल्युं सुण,
अपणा मन मा गुण,
भोळ न बोलि मैकु,
बग्त की कदर कर,
फिर बौड़िक नि आलु,
त्वैन भौत पछ्ताण,
फंसोरिक न स्यो,
मैं "दस्तक" देणु छौं आज....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १३.१२.२०११)

क्यों किया था प्यार आपने,
फिर कैसे जुदा हो गये,
इंतज़ार आज भी है मुझे,
कब मिलोगे आप,
इस धरा से जाने से पहले.
(जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु, 13.12.11)

क्या बोन्न बात उत्तराखंड का ढोल की,
वैका प्यारा बोल की,
जुग राजी रै, तू सदानि,
मेरा कविमन की कामना छ....
उत्तराखंडी भाई बंधो...
ढोल कू त्रिस्कार न करा,
ब्यो बारात मा,
ढोल की शान बढ़ावा.....
कवि: जगमोहन सिंह जयाडा "जिज्ञासु" 12.11011

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