Tuesday, December 27, 2011

"ढाक के वही तीन पात"

सोचा था ऊजाला होगा,
खुशहाल होंगे खेत खलिहान,
जन्म हुआ था उत्तराखंड का,
मन में था बहुत अभिमान...

आबाद नहीं बेघर हुए,
पहाड़ के लिए आज भी रात,
गावों में ख़ामोशी पसरी,
जैसी थी वैसी है बात.....

पर्वतजन मनन करो,
हमारे उत्तराखंड में अब चुनाव,
वक्त है सतर्क हो जाओ,
मूछों पर अब दे दो ताव.....

बकरी नहीं बाघ बनो,
ढंग से करो प्रतिनिधि का चुनाव,
जो सपने साकार करे,
फिर न हो, मन में पछताव.....

कवि "जिज्ञासु" दुविधा में,
देखो बहुत दुःख की बात,
पहाड़ आज खाली हो गया,
पर्वतजन है खाली हाथ,
निराश है देवभूमि भी,
उत्तराखंड बनाने के बाद,
ढाक के वही तीन पात....

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २७.१२.२०११)

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