सोचा था ऊजाला होगा,
खुशहाल होंगे खेत खलिहान,
जन्म हुआ था उत्तराखंड का,
मन में था बहुत अभिमान...
आबाद नहीं बेघर हुए,
पहाड़ के लिए आज भी रात,
गावों में ख़ामोशी पसरी,
जैसी थी वैसी है बात.....
पर्वतजन मनन करो,
हमारे उत्तराखंड में अब चुनाव,
वक्त है सतर्क हो जाओ,
मूछों पर अब दे दो ताव.....
बकरी नहीं बाघ बनो,
ढंग से करो प्रतिनिधि का चुनाव,
जो सपने साकार करे,
फिर न हो, मन में पछताव.....
कवि "जिज्ञासु" दुविधा में,
देखो बहुत दुःख की बात,
पहाड़ आज खाली हो गया,
पर्वतजन है खाली हाथ,
निराश है देवभूमि भी,
उत्तराखंड बनाने के बाद,
ढाक के वही तीन पात....
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २७.१२.२०११)
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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