Sunday, December 18, 2011

"वीं भग्यानन कुछ नि बोलि"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
जिंदगी मा, मैन जू भि करि,
दारू पीक दरोळु बण्यौं,
गौं की गुजारी मा, पड़्युं रयौं,
खै पीक बेहोश होयौं,
जनकैक छोरा छारा, घौर ल्हेन,
पर वीं भग्यानन कुछ नि बोलि.....

वींमा मैन झूट भि बोलि,
दुनियान मैकु झूट्टू बोलि,
पर अपणा मन की गेड़,
मैन वींमा कब्बि नि खोलि,
क्या बोन्न हे दुनिया वाळौं,
पर वीं भग्यानन कुछ नि बोलि.....

सारी जिंदगी वींका दगड़ा बिताई,
पर वींकू ख्याल कम ही आई,
जिंदगी भर दुनिया देखि,
वींका हाल फर मैकु,
तरस कब्बि नि आई,
खूब सेवा करि वींन मेरी,
क्या बोन्न कर्म मेरा यना रैन,
पर वीं भग्यानन कुछ नि बोलि.....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १९.१२.२०११)
www.pahariforum.net

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल