Friday, December 23, 2011

"चिठ्ठी वींका नौं"

(जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
मैं यख राजि ख़ुशी छौं,
तू तख होलि,
मेरा नौना नौनी का दगड़ा,
यानि प्यारा बाल बच्चों दगड़ि...

तू लिखणी छैं, सैडा गौं की ब्वारी,
बाल बच्चों समेत प्रदेश चलिग्यन,
गौं छोड़िक, अपणा ऊं दगड़ि,
अबरी दां जब मैं घौर औलु,
त्वे भी ल्ह्यौलु अपणा दगड़ा,
तू जग्वाळ मा रै, निराश न ह्वै....

प्यारी ब्वै कू क्या होलु?
ब्वैन त बोन्न,
मैं नि औन्दु तुमारा दगड़ा,
मेरु त ज्यू नि लगदु,
परदेश मा, भक्कु भी भौत लगदु,
अपणा ज्युन्दा ज्यू,
नि छोड़ी सकदु घर बार,
प्यारू मुल्क, प्यारा मैत जनु....

तू निराश न ह्वै, जग्वाळ मा रै,
मेरु भी मन नि लगदु यख,
अब घर गौं त छोडण ही पड़लु,
या बग्त की बात छ......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २३.१२.२०११)
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