(जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
मैं यख राजि ख़ुशी छौं,
तू तख होलि,
मेरा नौना नौनी का दगड़ा,
यानि प्यारा बाल बच्चों दगड़ि...
तू लिखणी छैं, सैडा गौं की ब्वारी,
बाल बच्चों समेत प्रदेश चलिग्यन,
गौं छोड़िक, अपणा ऊं दगड़ि,
अबरी दां जब मैं घौर औलु,
त्वे भी ल्ह्यौलु अपणा दगड़ा,
तू जग्वाळ मा रै, निराश न ह्वै....
प्यारी ब्वै कू क्या होलु?
ब्वैन त बोन्न,
मैं नि औन्दु तुमारा दगड़ा,
मेरु त ज्यू नि लगदु,
परदेश मा, भक्कु भी भौत लगदु,
अपणा ज्युन्दा ज्यू,
नि छोड़ी सकदु घर बार,
प्यारू मुल्क, प्यारा मैत जनु....
तू निराश न ह्वै, जग्वाळ मा रै,
मेरु भी मन नि लगदु यख,
अब घर गौं त छोडण ही पड़लु,
या बग्त की बात छ......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २३.१२.२०११)
www.pahariforum.net
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
No comments:
Post a Comment