Wednesday, December 7, 2011

"माटु छ मनखि"

(रचनाकार:जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
जरा मन मा सोचा,
क्या सच छ?
फिर किलै अपणा मन मा,
हम तुम यनु नि सोच्दा,
एक दिन यनु आलु, जब हम तुम,
माटा मा मिलिक, माटु बणि जौला,
कुजाणि फिर यीं धरती मा,
कब माटा कू मनखि बणिक,
पुनर्जन्म धरिक औला...

सच जू भि छ मनखि कू,
पर जन्म-भूमि बोली भाषा कू,
ब्वे-बाब, नाता रिश्तों कू,
संस्कृति कू मान सम्मान करा,
अभिमान अपणा मन मा,
जिंदगी मा भला काम फर करा,
याद रखा "माटु छ मनखि".....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित ८.११.२०११ )
www.pahariforum.net

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