(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
भिन्डी त नि बोल्दौं मैं,
पर जथगा मेरा भाग मा होलु,
राळी राळिक अपणा हाथन,
बड़ा बड़ा गफ्फा मारिक,
अर सपोड़िक जरूर खौलु,
तुमारु नि खौलु, कैकु नि खौलु,
अपणा हाथुन मेहनत की खौलु...
पूछा वे सनै, जू फ़ोकट की,
लूट औताळि की, बिराणी पीठी मा,
सदानि खांदु, बेदर्द ह्वैक,
पिचास की तरौं, मनखि ह्वैक भी,
तब्बित पूछि नेगीदान,
अपणा गढ़वाली गीत का द्वारा,
हे तू "कथगा खैल्यु" हराम की,
चुचा मेहनत की खा.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २०.१२.११)
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Monday, December 19, 2011
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