जू करदि छन चुंच्याट,
दिन भर डाळ्यौं मा बैठिक,
फुर्र यथैं वथैं उड़ी उड़िक,
जान्दी छन झपन्याळि डाळ्यौं मा,
जन भीमळ, खड़ीक, बांज, बुरांश की,
अर पैदा करदि छन,
चुंच्याट मचैक मनभावन,
कर्ण प्रिय गीत संगीत.......
पहाड़ की की प्यारी घुघती,
जब घुरान्दी छ,
तब खुदेड़ भौत खुदेन्दा छन,
पोथली अर इंसान कू रिश्ता,
कथगा मार्मिक छ,
पोथल्यौं का प्रति प्रेम करा,
दगड़्या छन हमारी,
"पहाड़ की पोथली"......
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २८.१२.२०११
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Wednesday, December 28, 2011
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