Friday, June 5, 2015

मन ही मन खुश होन्‍दु छ.......

एक दगड़या थौ बेरोजगार,
एक व्‍यंग लिख्‍युं छ त्‍वै फर,
मैंन बोलि वेकु,
सुण्‍लि तू यार,
वैन बोलि पैलि तू,
मैकु खाणौं खलौ,
खाणौं खाण का बाद,
वेन बोलि अब,
पेप्‍सी पिलौ,
पेप्‍सी पिलौण का बाद,
वेन बोलि,
खाणौ भौत सवादि थौ,
वेकु मजा माटा मा मत मिलौ,
मैं ये देश की धरती मा,
खुद एक व्‍यंग छौं,
मैकु व्‍यंग न सुणौं,
जौन जन सेवा का नौं फर,
हमतैं बेरोजागारी कू रोजगार दिनि,
कुर्सी मा बैठि मौज करदु रैन......

व्‍यंग वे मास्‍टर का बारा मा सुणौ,
जू हमारा नौनौं पढ़ौण फर ध्‍यान नि देन्‍दु,
अर अपणि औलाद तैं,
अंग्रेजी स्‍कूल मा पढ़ौन्‍दु छ,
वे पुलिस का सिपै का बारा मा बतौ,
जू भ्रष्‍टाचार की गंगा बगौन्‍दु छ,
कानून कू रख्‍वाळु अफु तैं बतौन्‍दु छ,
वे डाग्‍टर का बारा मा सुणौ,
जू मोटी फीस ल्‍हीक,
मरीज तैं टेस्‍ट करौण की,
सलाह देन्‍दु छ,
कमीशन कमौन्‍दु छ,
मरीज तैं बोल्‍दु,
त्‍वै फर भंयकर बिमारी छ,
वे तैं भरमौन्‍दु छ......


अर्थ कू अनर्थ कन्‍न वाळा,
तै व्‍यगंकार तैं सुणौ,
जैकि टक्‍क मोटा लिफाफा फर रंदि,
अर अपणु उल्‍लू सीदा कन्‍न का खातिर,
व्‍यंग तैं अपंग बणौन्‍दु छ,
मन ही मन खुश होन्‍दु छ.......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक: 5.6.2015

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