Thursday, June 11, 2015

क्‍या छ जिंदगी.....

जिंदगी कू राज,
जाण्‍न का खातिर,
जिंदा रणु जरुरी छ,
पर आजतक क्‍वी,
मनखि सदा जिंदा नि रै,
प्रकृति कू नियम बोला,
या चोळा बदल की प्रक्रिया,
एक मजबूरी छ....

अपणि जिंदगी का,
स्‍वर्णिम दौर मा मनखि,
क्‍या क्‍या नि करि जान्‍दु,
जाण सी पैलि धरती मा,
वेकु करयुं बोल्‍यु रै जान्‍दु,
भलु करा या बुरु,
यु  हमारा हात छ,
जिंदगी हमारी,
बद्रविशाल जी का हात छ......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
रचना सर्वाधिकार सुरक्षति,
दिनांक 12.6.2015

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