Monday, June 29, 2015

धन बे दिल्‍ली.....



धन बे दिल्‍ली त्‍वै दिल्‍ली मा,
कथ्‍गा मनखि समौणा,
गढ़वाळि दिल्‍ली मा दनकिक ऐग्‍यन,
अपणु दर्द दबौणा.....

जैं भी कलोनी मा दिल्‍ली मा जावा,
नजर औन्‍दा गढ़वाळि,
घर घर जख्‍या कू तड़का लग्‍दु,
बणौन्‍दा पकोड़ी स्‍वाळि......

वे गढ़वाळ की रौनक हर्चिगी,
दिल्‍ली मा सदानि बग्‍वाळि,
कैका मन मा दर्द बस्‍युं छ,
खुश छन कुछ गढ़वाळि......

कूड़ी बंजेगि कंडाळि जमिगि,
पुंगड़ि पड़िग्‍यन बांजा,
कुछ का मन मा दर्द कतै नि,
बणिग्‍यन दिल्‍ली मा राजा.....

संस्‍कृति कू त्‍याग करिक,
होण लग्‍युं मोळ माटु,
अपणा गढ़वाळ तैं याद नि करदा,
खोज्‍दा नि गौं कू बाटु......

घडयाळा लगणा भूत पुजेणा,
पित्र भी यखि थर्पेणा,
दिल्‍ली भारी स्‍वाणि लगणि,
देब्‍ता भि यखि नचेणा......

दिल्‍ली देब्‍ता समान लगणि,
धन बे दिल्‍ली त्‍वैकु,
दिल वाळौं दिल्‍ली छैं तू,
क्‍या कसूर छ कैकु.......

- जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षित अर प्रकाशित
दिनांक 21.6. 2015

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