Sunday, June 14, 2015

एक बुढ़्या.....


हमारा गढ़वाळ कू एक बुढ़्या,
शिकारी कू शौकी भारी,
गौं का मनखि कठ्ठा ह्वैन,
लगोठ्या वेन एक मारी....

कात्‍लु पळ्येक कन्‍न लग्‍युं,
लगोठ्या कू कारबार,
घळ घळकौणु टुकड़ि मुकड़ि,
देखणा लोग हपार.....

सिरी फाड़िक वेन जब,
घळ्काई लगोठ्या कू आंखू,
गळ बळ गळ बळ कन्‍न लग्‍युं,
बंद ह्वैगि वेकु सांखू......

नौनान वेकी धौणि मा,
जोर सी मुठगैकि मारी,
गिच्‍चा बिटि आंखू छटगि,
खुशी ह्वैगि तब भारी.....

बचिगि बुढ़्या बड़ा भाग सी,
सब्‍यौन ऊ समझाई,
खै लेन्‍दि बुढ़्या टुकड़ि मुकड़ि,
आंखू क्‍यौकु घळ्काई.....

थर थर कौंपि बुढ़्या अफुमा,
भै बंधु तैं बताई,
बचपन बिटि मैं घळ्कौन्‍दु छौं,
यांकु मैंन घळ्काई.....

आणि पड़िग्‍यन आज मैकु,
आंखू नि घळ्कौलु,
तुमारु बोल्‍युं मैं याद रखलु,
टुकड़ि मुकड़ि खौलु......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 15.6.2015

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