Thursday, June 11, 2015

सरुलि.....



हे सरुलि,
तेरी मुखड़ि,
यनि छ दिखेणि,
कांठा मा की जोन जनि,
मुल मुल हैंसणि........
कवि जिज्ञासु की कलम सी श्रृंगार रस की रसधारा
दिनांक 11.6.2015

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