Wednesday, June 17, 2015

हैंसी खेलि खावा......



औंळि तोड़ी सौंळि भुला,
औंळि तोड़ी सौंळि
भै बंधु मा मेल रखा,
नि बटोळा बौंळि....
अजग्‍याल यू हि होणु,
भै बंधु मा निछ मेल,
जिंदगी द्वी दिन किछ,
खेलणा छौं खेल.....
गौड़ी कू कमर हे भुला,
गौड़ी कू कमर,
सोरौं देखि नि खिरसेणु,
क्‍वी निछ अमर.....
गरीबी का दिन मा सब्‍बि,
करदा था प्रेम भारी,
होन्‍दा खान्‍दा ह्वैग्‍यें चुचौं,
अब क्‍या छ लाचारी.....
भलि बात या हि होन्‍दि,
भै बंधी निभावा,
जैका भाग मा जथ्‍गा,
हैंसी खेलि खावा......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
मेरी अनुभूति वर्तमान फर,
सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 17.6.2015

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