Thursday, June 11, 2015

पहाड़ की याद.....

भड़ोक्‍युं थौ मन भारी,
होयिं थै लाचारी,
द्वी कटोरी पळ्यौ पिनि,
मन ह्वै खुश भारी......
छप छपि सी पड़ि तब,
लिंबु की खटै खाई,
फंसोरिक सेयौं तब,
यनि निंद आई.....
रुड़यौं का दिन छन,
होन्‍दा काफळ रसीला,
लगिं संगि खाणा होला,
हे प्रभु तेरी लीला....
छोया ढुंग्‍यौं का पाणी की,
भारी याद औणि,
पहाड़ की याद भुलाैं,
भारी छ सतौणि....
कवि जिज्ञासु की कलम सी कल्‍पना ठेट दर्द भरी दिल्‍ली मा।
सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनांक 11.6.2015

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