Wednesday, June 17, 2015

रवि अर कवि......

कवि की कल्‍पना,
कल्‍पना मा,
एक ऊड्यार देखणु छ,
तख बल बाग बैठ्युं,
कखि भागीरथी का छाला,
अपणा बच्‍चौं तैं,
प्‍यार कन्‍नु छ,
यख फुंड मनखि,
कतै नि आला.....

अलकनंदा मा,
मसीर माछु फटकणु छ,
देवप्रयाग संगम फर,
पाणी मा दनकणु छ,
किलैकि संगम फर,
क्‍वी माछु नि मारदु,
नहेन्‍दा छन मनखि,
संगम फर जब होन्‍दु,
पर्व कू दिन,
औन्‍दि पंचमी मकरैण,
पिंड दान करदा तख,
जैकु महत्‍व छ भारी,
जख मू भेंटेन्‍दि छन,
सासु भागीरथी,
अर अलकनंदा ब्‍वारि....

चंद्रकूट पर्वत फर,
ऊंचि चोटी मा,
विराजमान छ चंद्रवदनी,
ऋतु मौळ्यार मा,
जख हैंस्‍दा छन बुरांस,
औन्‍दा छन भक्‍तगण जख,
पूरी होन्‍दि मन की कामना,
अर मन की आस,
तख बिटि दिखेन्‍दु,
हैंस्‍दु हिमालय,
पैरि हो जन कांठ्यौं की,
सुखिली ठांटी.....

कवि की कल्‍पना छ,
देवभूमि उत्‍तराखण्‍ड तैं देखौं,
उड़िक अनंत आगास सी,
पंछी, पहाड़, लखि बखि बण,
देखौं जैक पास सी,
कवि जिज्ञासु की कल्‍पना,
अहसास करौणि होलि,
जख नि जान्‍दु रवि,
कल्‍पना मा तख,
पौंछि जान्‍दु कवि.......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 18.6.2015

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