Tuesday, May 10, 2011

"तेरी हाम छ"

क्या बोन्न, मेरा मुल्क,
घर घर मा आज,
नयाँ जमाना मा,
तेरी हाम छ.

त्वै बिना,
सूर्य अस्त का बाद,
मेरा मुल्क का मनखी,
रगबग करदा छन,
जब तू ऊँका पोटगा पेट,
बैठि जांदी छैं,
ऊँका मन मा,
ऊलार पैदा करदी छैं,
ज्वान अर बुढया का,
तब ऊँ तैं यनु लगदु,
सब्बि धाणि मिलिगी आज,
रात सुपन्याळि ह्वैगी,
अहा! कथगा मजा ऐगी,
बोतळ की बेटी,
आज का जमाना मा,
"तेरी हाम छ"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
दिनांक: १०.५.११ सर्वाधिकार सुरक्षित,
प्रकाशित पहाड़ी फोरम और मेरे ब्लॉग पर

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