Monday, May 16, 2011

"झपन्याळि डाळी का छैल"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")

बैठि थौ कबरी, सुण हे दगड़्या,
अपणा प्यारा, मुल्क पहाड़,
दोफरी कू घाम थौ, बगदु बथौं थौ,
डाळी थै झपन्याळि, बांज बुरांस की,
बासण लगिं थै, घुघती हिल्वांस,
हैंसण लग्युं थौ, बण मा बुरांस,
तू भी थै बैठ्युं, जरा याद कर,
बात छ हमारा, प्यारा बाळापन की,
वे दिन दगड़्या, बैठ्युं थौ मैं,
अंग्वाळ मारिक, हे तेरा गैल,
कुलदेवी चन्द्रबदनी का डंडा,
"झपन्याळि डाळी का छैल",
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरे ब्लॉग और पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
दिनांक: १२.५.२०११

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