(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
सुण हे भुल्ला,पाड़ की याद औणी,
भारी बितणी छ मन मा, हबरी छ सतौणी.....
पहाड़ छोड़ी दूर परदेश, लगदु छ भारी घाम,
झबड़ताळ सी लगदि छ, पीठी मा पड़दु डाम.....
दिन रात दनका दनकी, होईं रंदि छ राड़ धाड़,
ठंडा बथौं पाणी बिना, याद औन्दु प्यारू पहाड़.....
मेरा मुल्क प्यारी जगा छन, चन्द्रबदनी, अन्जनीसैण,
होला भग्यान काफल खाणा, मेरा प्यारा भाई बैण.....
ठण्डु पाणी छोया ढुंग्यौं कू, होला मनखी पेणा,
तिबारी डिंडाळ्यौं मा, फंसोरिक होला सेणा.....
द्योरू होलु बल बदलेणु, बरखा, बथौं अर किड़कताळ,
कथगा प्यारू लगणु होलु, ठण्डु प्यारू हमारू गढ़वाळ.
मेरा दगड़्या भौत होला, कखि दूर दूर परदेश,
होला ऊ भि भभसेणा, मन जौंकु, अबरी होलु गयुं गढ़देश....
"भक्कु लगिगी" भभसेणु छौं, तरसेणु छ पापी पराण,
मन मा बस्युं प्यारू मुल्क, कनुकै वख अबरी जाण......
(सर्वाधिकार सुरक्षित, पहाड़ी फोरम, मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित)
दिनांक: २७.५.२०११
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
फेसबुक पर भी प्रकाशित
http://www.facebook.com/#!/Nautiyal1981
प्रिय मित्र नौटियाल जी, ग्राम बैंसोली, अन्जनीसैण की फरमाइश पर रचित.....
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Friday, May 27, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
No comments:
Post a Comment