(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
मेरा मुल्क खासपट्टी,
टिहरी गढ़वाल मा,
दाना सयाणा भै बन्ध.....
बरखा बरखी डागर,
द्योरू बरखी डागर,
तब त समझा सच छ,
खासपट्टी मा अबरखण,
हळसुंगि बल काकर,
बल "यनु बोल्दा छन".....
छाँछ मागण जाण त,
भांडु क्यौकु लुकौण,
ज्व बात सच छ,
कतै नि छुपौण,
बल "यनु बोल्दा छन".....
गंगा जी का छाला फुन्ड,
थौ जाण लग्युं,
बल भौ सिंह ठेकेदार,
बोन्न लगि,
त्वैन क्या जाणन,
हे गंगा माई,
यख फुन्ड ऐ थौ,
भौ सिंह ठेकेदार,
वैन धोळ्यन धौळी मा,
रुपया कुछ कल्दार
बल "यनु बोल्दा छन".....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मेरे ब्लॉग और पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
दिनांक: १६.५.११
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Thursday, May 19, 2011
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