(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
भारी गाळ माणदा था,
मेरा मुल्क का मनखी,
जू कैन यनु बोल्यालि,
पर आज यनु निछ.......
जौंकी कूड़ी बांजा छन पड़ीं,
हमारा प्यारा मुल्क,
कुमौं अर गढ़वाळ,
समझा आज ऊँकू,
विकास होयुं छ......
विकास की दौड़ मा,
हमारा मुल्क कू,
हरेक मनखी खोयुं छ,
आज आशीर्वाद छ,
जू क्वी यनु बोलु,
"कूड़ी बांजा पड़्यन तेरी"....
(सर्वाधिकार सुरक्षित, पहाड़ी फोरम, मेरे ब्लाग पर प्रकाशित)
दिनांक: १८.५.२०११
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
No comments:
Post a Comment