कनु भलु लगदु,
वीर भड़ माधो सिंह भण्डारी,
जख छन सैणा सेरा,
लसण प्याज की क्यारी....
आमू का बग्वान छन,
छेंडू, घट्ट अर लम्बी कूल,
बलिदान आपकु वीर भड़ माधो,
क्वी नि सकदु भूल.....
देखि होलु आपका मलेथान,
माधो सिंह जी आपकु रंग रूप,
पूछा त बतौंदु निछ,
आज अफुमा होयुं छ चुप.....
अलकनंदान देखि होला,
माधो सिंह जी अपकु त्याग,
वीर भड़ जना करतब,
धन धन मलेथा तेरा भाग....
रुकमा रै होलि माधो जी,
आपका मन की भौत प्यारी,
पूछदि थै कनु तेरु मलेथा,
हे भड़ माधो भण्डारी.....
आपन बताई रुकमा तैं,
मेरा मलेथा बांदु की लसक,
बैखु कू अंदाज भलु,
मेरा मलेथा बैखु की ठसक....
आपन बताई रुकमा तैं,
मलेथा मा घांड्यौं कू घमणाट,
भैस्यौं का खरक छन,
बाखरौं का झुण्ड अर भिभड़ाट....
निर्पाणि कू सेरू माधो जी,
होंदु नि थौ बल अन्न पाणी,
बेटी नि देन्दा था मलेथा,
जख सब्बि धाणी की गाणी....
मलेथा की कूल बणैक,
मलेथा आज स्वर्ग का सामान,
आप फर आज मलेथा का मनखि,
करदा होला अभिमान....
आज अमर छन आप,
आपकु मलेथा गौं प्यारू,
गढ़कवि "जिज्ञासू" तैं भलु लगदु,
जू छ दुनिया मा न्यारु.....
(सर्वाधिकार सुरक्षित, पहाड़ी फोरम, मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित)
दिनांक: २५.५.२०११
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
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