(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" २९.५.२०११)
मैंन कलम हाथ मा उठाई, कल्पना मा तुमारु ख्याल आई,
कुलदेवी भगवती चन्द्रबदनी, सरस्वती जी का आशीर्वाद सी,
हे मेरी प्यारी कविताओं, मेरा मन मा तुमारा सृजन कू,
कुछ यनु ख्याल आई, कोरा कागज फर मैंन कलम घुमाई,
मेरा प्यारा पाठकु अर प्रशंसकुन, मेरु भौत उत्साह बढाई....
गढ़वाली भाषा अर पहाड़ फर कविता, मेरु रचना संसार छ,
मैं कवि जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु", पहाड़ मेरी आस छ,
कालजई कविताओं मेरी, हरेक पर्वतजन का मन मा बसि जावा,
जनु मेरु भाव व्यक्त करयुं छ, ऊँका मन मा पहाड़ प्रेम जगावा,
मेरा मन की आस छ, पहाड़ प्रेम की प्यारी कुतग्याळि लगावा,
मेरु मन बोल्दु छ, देवभूमि उत्तराखंड तैं देखौं अनंत आकाश सी,
समस्त उत्तराखंड तैं देखौं, अपणा आँखौंन जैक बिल्कुल पास सी,
पहाड़ फर मेरी प्यारी कविताओं, मैंन "तुमारा बाना" कलम उठाई ,
प्यारा उत्तराखंडी भै बन्धों का मन मा, पहाड़ प्रेम की आस जगाई.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित, दूरभास: 09868795187)
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Sunday, May 29, 2011
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