(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
जख प्यारी डांडी कांठी, छोयों कू ठण्डु पाणी,
मन मा बस्युं सब्यौं का, अर तर्सेंदु छ पराणी.
बांज बुरांस का बण छन, हैंसदा डाळ्यौं मा फूल,
सेरा पुंगड़ा प्यारी घाटी, माधो का मलेथा कूल.
ढुंगा प्यारा पौड़ पाखा, धौळ्यौं कू बगदु पाणी,
खैणा, तिमला, काफळ, हिंसर, अर सब्बि धाणी.
कोदु, झंगोरू, दाळ, गौथ, तोमड़ी, चचेंडी, कंडाळी,
कौंताळ मचौंदा छोरा छारा, मारदा छन फाळी.
बणु मा गोरु बाखरा, जख ग्वैर बजौंदा बाँसुळी,
बेटी ब्वारी गीत लगौंदी, हाथ मा घास की पूळी.
गौं गौं मा मंडाण लगदा, कुल देवतौं तैं मनौंदा,
संकट मा रगछा कनि, ऊँ मन की बात बतौंदा.
अब मोळ माटु होण लगि, हे प्यारा मुल्क हमारा,
विकास की झबड़ताळ सी, पिथेणा ऊ पहाड़ प्यारा.
(सर्वाधिकार सुरक्षित, पहाड़ी फोरम, मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित)
दिनांक: २६.५.२०११
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
फेसबुक पर भी प्रकाशित
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Thursday, May 26, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
No comments:
Post a Comment