Thursday, May 26, 2011

"हमारा मुल्क"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
जख प्यारी डांडी कांठी, छोयों कू ठण्डु पाणी,
मन मा बस्युं सब्यौं का, अर तर्सेंदु छ पराणी.
बांज बुरांस का बण छन, हैंसदा डाळ्यौं मा फूल,
सेरा पुंगड़ा प्यारी घाटी, माधो का मलेथा कूल.
ढुंगा प्यारा पौड़ पाखा, धौळ्यौं कू बगदु पाणी,
खैणा, तिमला, काफळ, हिंसर, अर सब्बि धाणी.
कोदु, झंगोरू, दाळ, गौथ, तोमड़ी, चचेंडी, कंडाळी,
कौंताळ मचौंदा छोरा छारा, मारदा छन फाळी.
बणु मा गोरु बाखरा, जख ग्वैर बजौंदा बाँसुळी,
बेटी ब्वारी गीत लगौंदी, हाथ मा घास की पूळी.
गौं गौं मा मंडाण लगदा, कुल देवतौं तैं मनौंदा,
संकट मा रगछा कनि, ऊँ मन की बात बतौंदा.
अब मोळ माटु होण लगि, हे प्यारा मुल्क हमारा,
विकास की झबड़ताळ सी, पिथेणा ऊ पहाड़ प्यारा.
(सर्वाधिकार सुरक्षित, पहाड़ी फोरम, मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित)
दिनांक: २६.५.२०११
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
फेसबुक पर भी प्रकाशित

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल